Thursday 23 February 2017

|| #सोनाघाटी की पहाड़ी और #सतपुड़ा_के_घने_जंगल ||

|| #सोनाघाटी की पहाड़ी और #सतपुड़ा_के_घने_जंगल ||
देवाधिदेव महादेव की कृपा से महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सोनाघाटी शिव मन्दिर के दर्शन करने का सिलसिला जो १९९२ से प्रारम्भ हुआ आज तक जारी है | सोनाघाटी बैतूल की वह पहाड़ी है जिसने बैतूल के पर्यावरण को अब तक सम बनाकर रखा था | पिछले दस-पन्द्रह वर्षों में इस पहाड़ी को छिन्न-भिन्न करने का जो पाप किया जा रहा है, उसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे है | फोरलेन ने तो इस पहाड़ी का कबाड़ा ही कर दिया | कभी मार्च अन्त तक घरों में पंखे बन्द रखने वाला बैतूल अब फरवरी में ही तपने लगा है | कभी वर्ष भर सुन्दर बहने वाली सोनाघाटी पहाड़ी से निकली नदी अब गंदे नाले में बदल गई है |
सोनाघाटी की श्रंखलाबद्ध पहाड़ी को पहली बार १८९३-९४ में काटा गया था जब इटारसी-नागपुर रेलवे लाईन बिछाई गई थी | लैकिन तब जंगल घना होने तथा पहाड़ी को तिरछा काटने से बैतूल नगर के तापमान में कोई विशेष अंतर नहीं आया होगा | उसी समय यह पहाड़ी दो भागों में विभाजित हुई और कभी एक ही पहाड़ी पर बने शिव और हनुमान मन्दिर पृथक हो गए |
परन्तु जंगल तब भी बहुत घना रहा होगा, यह इस बात से सिद्ध होता है कि प्रकृति के चितेरे कवि दादा #भवानीप्रसाद_मिश्र ने सोनाघाटी की इसी पहाड़ी पर बैठकर १९३९ में अपनी कालजयी रचना “सतपुड़ा के घने जंगल, ऊँघते अनमने जंगल” लिखी थी | बैतूल और दादा भवानी प्रसाद मिश्र जी के जानने वालों का मानना है कि यह रचना दादा ने हनुमान मन्दिर की पहाड़ी पर बैठकर लिखी थी | तब से हर वर्ष मैं भगवान शिव और बजरंग बली के साथ उस शिला को भी नमन करके आता हूँ |
अभी दो वर्ष पूर्व मिश्र जी के जन्मशताब्दी वर्ष में हमारे विद्यालय भारत भारती ने इस कालजयी रचना को सोनाघाटी से महज डेढ़ किलोमीटर दूर अपने विद्यालय परिसर में पत्थर पर खुदवाकर धरोहर बनाया है और मिश्र जी का जो जंगल अब बीस किलोमीटर दूर चला गया उसकी भरपाई के लिए पौधरोपण और संरक्षण का कार्य भी भारत भारती के द्वारा हो रहा है |
जब इस कविता को पत्थर पर खुदवाने की जानकारी भवानीप्रसाद मिश्र जी के बेटे व प्रसिद्ध पर्यावरणविद #अनुपम_मिश्र जी (दिल्ली) को मिली तो उन्होंने मुझे फोन कर खूब प्रशंसा की तथा एक बार भारत भारती आकर शिलालेख को देखने की तीव्र इच्छा प्रकट की थी | किन्तु शायद ईश्वर को यह स्वीकार नहीं था अनुपम जी यह शिलालेख देखे बिना ही इस नश्वर संसार से विदा हो गए |
हम बैतूलवासियों को प्रकृति के चितेरे और रक्षक पिता-पुत्र (दादा भवानी प्रसाद और अनुपम मिश्र जी) को अगर सच्ची श्रद्धांजलि देना है तो सम्पूर्ण सोनाघाटी की पहाड़ियों को न केवल बचाना पड़ेगा अपितु उसे हरियाली साड़ी पहनाकर श्रंगार कर रहे Arun Singh Bhadoriya जी जैसे प्रकृति पुजारियाँ का सहयोग भी करना होगा | पहाड़ों को बचाने के लिए ही हमारे पूर्वजों ने वहाँ देवालय स्थापित किये हैं | यह पूज्य भाव भी समाज का बना रहे, देवताओं के साथ पहाड़ और पेड़ भी पुजते रहे | यही आज का शिव संकल्प है | इति | -मोहन नागर
(आज प्रातः सोनाघाटी से लिए कुछ चित्र)
#महाशिवरात्रि की सभी मित्रों-शुभचिन्तकों को बधाईयाँ-शुभकामनाएँ |