#गुजरात_प्रवास (भाग-१)
सड़क मार्ग से गुजरात प्रवास पर जाते समय रास्ते में सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान के वाहन चालक श्री सुखदेव सिसोदिया का गाँव जामन्या (निवाली-बड़वानी) पड़ता है | सुखदेव भाई का आग्रह था कि दोपहर का भोजन घर पर करेंगे | हम दो गाड़ियों में Niranjan Sharma जी, बुधपाल सिंह जी, Gopal Soni जी,Roopsingh Lohane जी तथा हुकुमचंद भुवंता जी सहित आठ लोग थे | जैसे जी बारह बजे के लगभग सुखदेव भाई के घर पहुँचे तो वहाँ तीस-पैंतीस महिला-पुरुष मिलकर दाल-पानिया (मक्का की बाटी-उड़द की दाल) बना रहे थे |
मैंने सुखदेव भैया से कहा "क्यों भाई पूरा गाँव इकठ्ठा हो गया" |
सुखदेव ने कहा "नहीं भाईसाहब, ये सब मेरे एक ही परिवार के लोग है" |
हम सब को सुखद आश्चर्य हुआ कि गाँवों में आज भी सयुंक्त परिवार इतनी बड़ी संख्या में रहता है | ये सब सुखदेव भाई के पिताजी श्रद्देय गारदिया जी के स्नेह व समन्वय का ही प्रताप है | चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि वे चार भाई में से अकेले बचे हैं | सभी भाईयों के बाल बच्चों की जवाबदारी उन्होंने ही निभाई है | उनका कुटुम्भ तो गाँव में चार सौ से अधिक संख्या का है | पर एक ही छत के नीचे चालीस से अधिक उनके तथा भाईयों के बच्चे, नाती-पोते रहते हैं |
घर पर अच्छी खेती है, सभी उन्नत खेती करते हैं | गाय-भैंस है, भोजन गोबर गैस पर बनता है | परिवार के कुछ सदस्य बाहर भी नौकरी करते हैं, लैकिन वार-त्यौहार पर सब इकठ्ठे हो जाते हैं |
भारत के सरल सहज जनजाति समाज ने न केवल प्राकृतिक सम्पदा को बचाकर रखा अपितु भारत की सांस्कृतिक विरासत और जीवन मूल्यों को भी संजोकर रखा है | दाल-पानिए का पेट भर रसास्वादन कर व पूरे परिवार को यथायोग्य प्रणाम कर हम अगले पड़ाव की ओर चल दिए |
#गुजरात_प्रवास (भाग-२)
गुजरात के भरूच जिले की मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से लगी सीमा जनजाति बहुल है | ईसाई मिशनरियाँ देश के हर प्रान्त के सीमावर्ती क्षेत्रों में ही सेवा की आड़ में मतान्तरण का जाल बुनती है | भरूच की नेत्रंग तहसील के गाँव-गाँव में मिशनरियों की गतिविधियाँ चलती हैं | अनेक गाँवों में मतान्तरण भी हुआ है |
गुजरात विद्या भारती द्वारा जब जनजाति क्षेत्र में कार्य विस्तार की बात आई तो सबका ध्यान इस क्षेत्र की ओर आया | तब २००६-०७ में "माधव विद्या पीठ" नामक एक शैक्षिक संस्थान की स्थापना नेत्रंग के पास काकड़कुई गाँव में हुई | गुजरात के जनजाति शिक्षा के अब प्रान्त प्रमुख श्री विजय भाई सुरतिया (Vijaysinh Suratia) ने तब चार वर्ष का अपना पूरा समय देकर उस बंजर जमीन को हरी-भरी करने तथा संस्थान को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कार्यकर्ताओं के साथ दिन-रात एक कर दिया |
तब जहाँ पीने का पानी डेढ़ किलोमीटर दूर से लाना पड़ता था | आज वहाँ आम, नीम, गुलमोहर, चन्दन सहित बीसीयों प्रजाति के वृक्ष फलफूल रहे हैं | ३०० से अधिक वसावा जनजाति के भैया-बहिन आवासीय विद्यालय में रहकर यहाँ नि:शुल्क अध्ययन कर रहे हैं | बच्चों का अनुशासन, सरलता, परिश्रम देखने लायक है | तीस से अधिक गिर गायों की सुन्दर गोशाला है | आसपास के गाँवों में शिक्षा के अनेक केन्द्र प्रारम्भ हुए हैं | अच्छे परीक्षा परिणाम और सुसंस्कारों के कारण अब लोग मिशनरियों के स्कूलों से बच्चों को निकालकर माधव विद्यापीठ में भर्ती कराने लगे हैं |
विद्या भारती की ग्रामीण और जनजाति शिक्षा में शिशु शिक्षा के पाठ्यक्रम पर यहीं शिशु वाटिका की अखिल भारतीय प्रमुख आशा बेन थानकी के मार्गदर्शन में सर्वश्री निरंजन जी, भुवंता जी, बुधपाल जी, गोपाल जी, रूपसिंह जी के साथ तीन दिन चिन्तन हुआ | इस हेतु आसपास के गाँवों में जाकर स्थानीय समाज से वार्तालाप भी हुआ | गुजराती, मालवी और निमाड़ी तीनों भाषाएँ सगी बहिनों की तरह होने से सबसे बातें करने में बहुत आसानी हुई | जहाँ जाओ वहाँ अपनी आदत अनुसार मैंने गौ आधारित कृषि के कुछ गुर भी बच्चों, आचार्यों व अभिभावकों को सिखाये |
सड़क मार्ग से गुजरात प्रवास पर जाते समय रास्ते में सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान के वाहन चालक श्री सुखदेव सिसोदिया का गाँव जामन्या (निवाली-बड़वानी) पड़ता है | सुखदेव भाई का आग्रह था कि दोपहर का भोजन घर पर करेंगे | हम दो गाड़ियों में Niranjan Sharma जी, बुधपाल सिंह जी, Gopal Soni जी,Roopsingh Lohane जी तथा हुकुमचंद भुवंता जी सहित आठ लोग थे | जैसे जी बारह बजे के लगभग सुखदेव भाई के घर पहुँचे तो वहाँ तीस-पैंतीस महिला-पुरुष मिलकर दाल-पानिया (मक्का की बाटी-उड़द की दाल) बना रहे थे |
मैंने सुखदेव भैया से कहा "क्यों भाई पूरा गाँव इकठ्ठा हो गया" |
सुखदेव ने कहा "नहीं भाईसाहब, ये सब मेरे एक ही परिवार के लोग है" |
हम सब को सुखद आश्चर्य हुआ कि गाँवों में आज भी सयुंक्त परिवार इतनी बड़ी संख्या में रहता है | ये सब सुखदेव भाई के पिताजी श्रद्देय गारदिया जी के स्नेह व समन्वय का ही प्रताप है | चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि वे चार भाई में से अकेले बचे हैं | सभी भाईयों के बाल बच्चों की जवाबदारी उन्होंने ही निभाई है | उनका कुटुम्भ तो गाँव में चार सौ से अधिक संख्या का है | पर एक ही छत के नीचे चालीस से अधिक उनके तथा भाईयों के बच्चे, नाती-पोते रहते हैं |
घर पर अच्छी खेती है, सभी उन्नत खेती करते हैं | गाय-भैंस है, भोजन गोबर गैस पर बनता है | परिवार के कुछ सदस्य बाहर भी नौकरी करते हैं, लैकिन वार-त्यौहार पर सब इकठ्ठे हो जाते हैं |
भारत के सरल सहज जनजाति समाज ने न केवल प्राकृतिक सम्पदा को बचाकर रखा अपितु भारत की सांस्कृतिक विरासत और जीवन मूल्यों को भी संजोकर रखा है | दाल-पानिए का पेट भर रसास्वादन कर व पूरे परिवार को यथायोग्य प्रणाम कर हम अगले पड़ाव की ओर चल दिए |
#गुजरात_प्रवास (भाग-२)
गुजरात के भरूच जिले की मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से लगी सीमा जनजाति बहुल है | ईसाई मिशनरियाँ देश के हर प्रान्त के सीमावर्ती क्षेत्रों में ही सेवा की आड़ में मतान्तरण का जाल बुनती है | भरूच की नेत्रंग तहसील के गाँव-गाँव में मिशनरियों की गतिविधियाँ चलती हैं | अनेक गाँवों में मतान्तरण भी हुआ है |
गुजरात विद्या भारती द्वारा जब जनजाति क्षेत्र में कार्य विस्तार की बात आई तो सबका ध्यान इस क्षेत्र की ओर आया | तब २००६-०७ में "माधव विद्या पीठ" नामक एक शैक्षिक संस्थान की स्थापना नेत्रंग के पास काकड़कुई गाँव में हुई | गुजरात के जनजाति शिक्षा के अब प्रान्त प्रमुख श्री विजय भाई सुरतिया (Vijaysinh Suratia) ने तब चार वर्ष का अपना पूरा समय देकर उस बंजर जमीन को हरी-भरी करने तथा संस्थान को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कार्यकर्ताओं के साथ दिन-रात एक कर दिया |
तब जहाँ पीने का पानी डेढ़ किलोमीटर दूर से लाना पड़ता था | आज वहाँ आम, नीम, गुलमोहर, चन्दन सहित बीसीयों प्रजाति के वृक्ष फलफूल रहे हैं | ३०० से अधिक वसावा जनजाति के भैया-बहिन आवासीय विद्यालय में रहकर यहाँ नि:शुल्क अध्ययन कर रहे हैं | बच्चों का अनुशासन, सरलता, परिश्रम देखने लायक है | तीस से अधिक गिर गायों की सुन्दर गोशाला है | आसपास के गाँवों में शिक्षा के अनेक केन्द्र प्रारम्भ हुए हैं | अच्छे परीक्षा परिणाम और सुसंस्कारों के कारण अब लोग मिशनरियों के स्कूलों से बच्चों को निकालकर माधव विद्यापीठ में भर्ती कराने लगे हैं |
विद्या भारती की ग्रामीण और जनजाति शिक्षा में शिशु शिक्षा के पाठ्यक्रम पर यहीं शिशु वाटिका की अखिल भारतीय प्रमुख आशा बेन थानकी के मार्गदर्शन में सर्वश्री निरंजन जी, भुवंता जी, बुधपाल जी, गोपाल जी, रूपसिंह जी के साथ तीन दिन चिन्तन हुआ | इस हेतु आसपास के गाँवों में जाकर स्थानीय समाज से वार्तालाप भी हुआ | गुजराती, मालवी और निमाड़ी तीनों भाषाएँ सगी बहिनों की तरह होने से सबसे बातें करने में बहुत आसानी हुई | जहाँ जाओ वहाँ अपनी आदत अनुसार मैंने गौ आधारित कृषि के कुछ गुर भी बच्चों, आचार्यों व अभिभावकों को सिखाये |
#गुजरात_प्रवास (भाग-३)
नेत्रंग (भरूच) के आसपास के कुछ गाँवों में घूमने पर कहीं-कहीं पृथक "भीलीस्तान" बनाने के स्वर सुनाई दिए | कम ही लोग जानते हैं कि गुजरात के साबरकांठा, बनासकांठा, पंचमहल, दाहोद, नर्मदा, भरूच, तापी, डांग, सूरत, नवसारी, वलसाड और इससे जुड़े हुए राजस्थान के बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा और मध्यप्रदेश के रतलाम, झाबुआ, अलीराजपुर, बडवानी, धार, महाराष्ट्र के नंदुरबार, धुले, नासिक आदि जिलों को मिलाकर एक नया राज्य की चर्चा अनेक वर्षों से है|
जागरूक ग्रामीणों से चर्चा करने पर ध्यान में आया कि इस क्षेत्र में आन्दोलन को अंदर से खाद-पानी देने का काम मिशनरियाँ और अपने बिहार वाले इशरत के अब्बू का दल भी वहाँ लोगों को यूनाइटेड कर रहा है | एक समय जनता दल गुजरात में प्रभावशाली राजनीतिक दल था, अब उसके कुछ अवशेष भरूच जिले में ही बचे हैं | लोगों ने बताया कि यहाँ भी चर्च और#लाल_गुलाम एक ही थेली के चट्टे-बट्टे हैं |
नेत्रंग (भरूच) के आसपास के कुछ गाँवों में घूमने पर कहीं-कहीं पृथक "भीलीस्तान" बनाने के स्वर सुनाई दिए | कम ही लोग जानते हैं कि गुजरात के साबरकांठा, बनासकांठा, पंचमहल, दाहोद, नर्मदा, भरूच, तापी, डांग, सूरत, नवसारी, वलसाड और इससे जुड़े हुए राजस्थान के बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा और मध्यप्रदेश के रतलाम, झाबुआ, अलीराजपुर, बडवानी, धार, महाराष्ट्र के नंदुरबार, धुले, नासिक आदि जिलों को मिलाकर एक नया राज्य की चर्चा अनेक वर्षों से है|
जागरूक ग्रामीणों से चर्चा करने पर ध्यान में आया कि इस क्षेत्र में आन्दोलन को अंदर से खाद-पानी देने का काम मिशनरियाँ और अपने बिहार वाले इशरत के अब्बू का दल भी वहाँ लोगों को यूनाइटेड कर रहा है | एक समय जनता दल गुजरात में प्रभावशाली राजनीतिक दल था, अब उसके कुछ अवशेष भरूच जिले में ही बचे हैं | लोगों ने बताया कि यहाँ भी चर्च और#लाल_गुलाम एक ही थेली के चट्टे-बट्टे हैं |
एक गाँव के किनारे पहाड़ी पर बनी कब्र पर क्रास लगा देखकर मैंने स्थानीय ग्रामीणों से पूछा तो उन्होंने बताया कि जनजाति समाज के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उस क्षेत्र का पादरी मुर्दाखोर की तरह सूँघते हुए उस गाँव में पहुँच जाता है और मृतक के परिवार पर दबाव बनाकर कि मृतक कभी चर्च में आता था, यह हवाला देकर उसे दफनाने पर विवश करता है तथा उसकी कब्र पर क्रास लगवाता है | जबकि यहाँ के जनजाति समाज में अब अन्तिम क्रिया दाह संस्कार के द्वारा होने लगी है |
कुल मिलाकर समाज विघातक शक्तियाँ हमारे समाज को तोड़ने का षड्यंत्र देश के हर कोने-कुचारे में वर्षों से अबाध गति से चला रही थी | संघ और उससे प्रेरित संगठन उसे रोकने में अथवा अनेक स्थानों पर उनकी असलियत समाज को बताने में समर्थ हुए हैं | "वे" इसीलिये तो#संघ_मुक्त भारत चाहते हैं |
कुल मिलाकर समाज विघातक शक्तियाँ हमारे समाज को तोड़ने का षड्यंत्र देश के हर कोने-कुचारे में वर्षों से अबाध गति से चला रही थी | संघ और उससे प्रेरित संगठन उसे रोकने में अथवा अनेक स्थानों पर उनकी असलियत समाज को बताने में समर्थ हुए हैं | "वे" इसीलिये तो#संघ_मुक्त भारत चाहते हैं |
#गुजरात_प्रवास (भाग-४)
वापसी में सबकी इच्छा "स्टैच्यू आफ यूनिटी" स्थल देखने की हुई | यह स्थान भरूच के पास नर्मदा जिले में सरदार सरोवर बाँध से सवा तीन किलोमीटर की दूरी पर साधु बेट नामक स्थान पर नर्मदा जी के बीचोंबीच एक टापू पर है | यहीं पर लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का दुनियाँ में सबसे ऊँचा (१८२ मीटर) स्मारक बनने वाला है | इस विशालकाय भव्य मूर्ति का शिलान्यास २०१३ में नरेन्द्र भाई जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब कर चुके हैं |
एक तरफ विन्ध्याचल तथा दूसरी ओर सतपुड़ा पर्वत है | माँ नर्मदा के एकदम मध्य में यह स्मारक बन रहा है | जब हम वहाँ पहुँचे तो स्मारक स्थल तक अभी जाने की अनुमति नहीं होने से किनारे से ही निर्माणाधीन स्मारक को देखा | आधार का काम लगभग पूर्णता की ओर है | वहाँ के एक अधिकारी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि इस स्मारक के आगे एक बाँध ओर प्रस्तावित है, जहाँ पण बिजली से निकलने वाले जल को संग्रहित कर उसे पुनः सरदार सरोवर में लिफ्ट किया जायेगा | तब यह स्मारक पूर्ण रूप से जल के मध्य में होगा |
सरदार सरोवर के सामने लगी लोहपुरुष की प्राचीन प्रतिमा को प्रणाम कर विशालकाय पण बिजली घर को देखकर वहाँ से निकली नदियों के समान नहरों के किनारे-किनारे आगे बढ़ते हुए हम मध्यप्रदेश के अलीराजपुर नगर होते हुए निरंजन जी के गाँव झापड़ी में उनके खेत में खटिया पर यात्रा की थकान दूर कर घर में गरमागरम पराठे खाकर अपने-अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए |
|| इति ||
वापसी में सबकी इच्छा "स्टैच्यू आफ यूनिटी" स्थल देखने की हुई | यह स्थान भरूच के पास नर्मदा जिले में सरदार सरोवर बाँध से सवा तीन किलोमीटर की दूरी पर साधु बेट नामक स्थान पर नर्मदा जी के बीचोंबीच एक टापू पर है | यहीं पर लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का दुनियाँ में सबसे ऊँचा (१८२ मीटर) स्मारक बनने वाला है | इस विशालकाय भव्य मूर्ति का शिलान्यास २०१३ में नरेन्द्र भाई जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब कर चुके हैं |
एक तरफ विन्ध्याचल तथा दूसरी ओर सतपुड़ा पर्वत है | माँ नर्मदा के एकदम मध्य में यह स्मारक बन रहा है | जब हम वहाँ पहुँचे तो स्मारक स्थल तक अभी जाने की अनुमति नहीं होने से किनारे से ही निर्माणाधीन स्मारक को देखा | आधार का काम लगभग पूर्णता की ओर है | वहाँ के एक अधिकारी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि इस स्मारक के आगे एक बाँध ओर प्रस्तावित है, जहाँ पण बिजली से निकलने वाले जल को संग्रहित कर उसे पुनः सरदार सरोवर में लिफ्ट किया जायेगा | तब यह स्मारक पूर्ण रूप से जल के मध्य में होगा |
सरदार सरोवर के सामने लगी लोहपुरुष की प्राचीन प्रतिमा को प्रणाम कर विशालकाय पण बिजली घर को देखकर वहाँ से निकली नदियों के समान नहरों के किनारे-किनारे आगे बढ़ते हुए हम मध्यप्रदेश के अलीराजपुर नगर होते हुए निरंजन जी के गाँव झापड़ी में उनके खेत में खटिया पर यात्रा की थकान दूर कर घर में गरमागरम पराठे खाकर अपने-अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए |
|| इति ||