Tuesday 10 October 2017

#आदर्श_ग्राम

#आदर्श_ग्राम 
दो वर्ष पूर्व विद्या भारती जनजाति शिक्षा के आदर्श ग्राम बाचा के ग्रामवासियों से मिलने संघ के क्षेत्र प्रचारक आदरणीय अरुण जी जैन आये थे | तब ग्राम भ्रमण के समय उन्होंने आंवला का एक पौधा भी रोपा था |
आज पुनः बाचा जाना हुआ तो मैंने उस पौधे के बारे में पूछताछ की | कार्यकर्ता मुझे तुरन्त उस स्थान पर ले गए | सुखद अनुभूति हुई कि वह नन्हा पौधा पेड़ का आकार लेता जा रहा है |
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विद्या भारती की जनजाति शिक्षा द्वारा २००९ में इस गाँव में एकल विद्यालय प्रारम्भ हुआ था | एक छोटा सा दीपक के प्रकाश से आज पूरा गाँव प्रकाशवान है |
- तब से अब तक गाँव का कोई भी विवाद थाने में नहीं पहुँचा | गाँव में १५-२० युवकों की टीम बनी | उसने गाँव का परिदृश्य बदल दिया |
हर वर्ष जल संरक्षण के लिए पूरा गाँव #जल_महोत्सव मनाता है | गाँव के -
- अधिकांश लोग बोरी बाँध मे श्रमदान करते हैं | (इस वर्ष गाँव का जल महोत्सव अगले शनिवार १४ अक्टूबर को है)
- सप्ताह में एक दिन पूरा गाँव ग्राम स्वच्छता करता है | कुओं और हेंडपम्प की भी नियमित सफाई होती है |
- घर-घर अन्नपूर्णा मंडपम सजने लगे ( घर से निकले अपशिष्ट जल से सब्जी-भाजी की खेती)
- पूरे उत्सव मिलकर मनाते हैं | वहाँ का जन्माष्टमी उत्सव देखने आसपास के गाँव से लोग देखने आते है |
- अभी अन्तराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर युवाओं ने ग्राम की वृद्ध माताओं को साड़ी पहनाकर सम्मान किया |
- जागरूकता आने से शासन की योजनाओं का लाभ भी गाँव को मिलने लगा | २००९ में केवल एक शौचालय था, आज हर घर में शोचालय है और लोग उसका उपयोग भी करते हैं |
- ग्राम के सरपंच राजेन्द्र कवडे जी ने बताया कि सिंचाई की व्यवस्था और शासन की अन्य योजनाओं के कारण जो गाँव दीपावली के बाद रोजगार की तलाश में लगभग पूरा ही पलायन कर जाता था, आज कोई रोजगार की तलाश में बाहर नहीं जाता | महिलाओं के छः स्व सहायता अल्प बचत समूह हैं |
- गाँव में अभी भी पूरी खेती बैलों से होती है, कुछ किसान पूर्णतः जैविक कृषि करने लगे है |
- गाँव के छोटे से हनुमान मन्दिर में प्रतिदिन आरती होती है | और आरती की थाली हर दिन अलग-अलग घर से जाती है |
- गाँव के युवा गाँव में व्याप्त कुछ अन्य बुराइयों को दूर करने के लिए उपाय सोचते रहते हैं |
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ग्राम पंचायत को इस बार "स्वच्छता ही सेवा" के अंतर्गत घोडाडोंगरी विकासखण्ड की स्वच्छ पंचायत का पुरूस्कार अभी २ अक्टूबर को मिला है | सरपंच साहब बोले "यह पुरूस्कार विद्या भारती के एकल विद्यालय के छोटे-छोटे बच्चों के कारण ही मिला है | इसी के कारण हमारे गाँव में परिवर्तन आया है " |

#CrackerBan

#CrackerBan
हिन्दू जाति तो वैसे ही #सहिष्णु है #माननीय | वो पटाखे तो क्या, इस जाति में कुछ तो ऐसे #सेकुलर है जो आप नारियल फोड़ने पर भी प्रतिबन्ध लगायेंगे तो भी आपका आदेश मान लेगी |
लैकिन हमारी आपसे कुछ विनती है #मी_लॉड कि आप .....
- उन पटाखों पर भी प्रतिबन्ध लगाओ जो पाकिस्तान के जीतने पर हिन्दुस्थान में फोड़े जाते हैं |
- उन पटाखों को भी फूटने से रोको जो एक विदेशी त्यौहार ३१ दिसम्बर की आधी रात को फोड़े जाते हैं, जिससे छोटे-छोटे बच्चों और वृद्धों की नींद खराब होती है |
- उन पटाखों का संज्ञान लीजीये #सर्वोच्च_न्यायालय जो छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में हमारे जवानों के शहीद होने पर आपकी नाक के नीचे #जेएनयू में फोड़े जाते हैं |
- उन पटाखों पर प्रतिबन्ध का आदेश दीजीये माननीय जो #चाइना से हमारे देश में आकर देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहे हैं |
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दीपावली के पटाखों से फैला प्रदूषण तो कुछ दिनों में खत्म हो जायेगा पर राष्ट्रद्रोह का यह जहरीला धुआँ देश की हर व्यवस्था में नासूर बनता जा रहा है | इसको रोकने में देश की कार्यपालिका और विधायिका का साथ दीजीये न्यायपालिका के न्यायप्रियों !
देशज पर्वों पर दायर याचिकाओं के पीछे की धूर्त मंशा समझिए माननीय ! वरना कल से कोई याचिका लगा देगा कि अश्रु गैस का धुआँ सबसे जहरीला होता है, इस पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए और आप लगा भी देंगे |

Sunday 1 October 2017

पानी रोको अभियान

#पानी_रोको_अभियान के तहत आज बैतूल जिले के सभी दस विकासखंडों में वर्षा जल को रोकने के लिए आयोजित कार्यशालाएं सम्पन्न हुई | आमला, बैतूल, घोड़ाडोंगरी, शाहपुर, चिचोली, भीमपुर, मुलताई, प्रभातपट्टन, भैंसदेही और आठनेर जनपद मुख्यालयों पर आयोजित इन कार्यशालाओं में जिला पंचायत, जनपद पंचायत के अधिकारी, निर्वाचित प्रतिनिधि, उप यंत्री, सम्बंधित नगरपालिकाओं के सीएमओ के साथ सभी ग्राम पंचायतों के सरपंच, सचिव, रोजगार सहायक, जन अभियान परिषद के समन्वयक, मेंटर्स, विद्या भारती जनजाति शिक्षा के कार्यकर्ताओं के साथ स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनधि आदि मिलाकर तीन हजार से अधिक प्रशिक्षार्थियों ने इस महाभियान में भागीदारी की |
कार्यशालाओं में गाँव के नदी, तालाब, कुओं और अन्य जलस्रोतों का रखरखाव, स्टाप डेम, पटिया डेम में समय से कड़ी शटर लगाकर बन्द करना तथा बोरी बंधान का प्रशिक्षण दिया गया | इसमें अधिक बातें पावर पाइंट के माध्यम से बताई | इसके अतिरिक्त वर्षा जल को रोकने के लिए अपने घरों में सोंखता गड्डा बनाना, खेतों में मेढ़ बंधान, खन्ती खोदना, पहाड़ों पर पानी रोकना तथा पौधारोपण की भी तकनीकियाँ सिखाई | परस्पर संवाद के माध्यम से प्रशिक्षणार्थियों के प्रश्न और सुझावों पर भी सभी जगह विस्तार से चर्चा हुई |
ईश्वर की कृपा कुछ ऐसी रही कि जिस दिन से प्रशिक्षण प्रारम्भ हुए उसी दिन से जिले मे वर्षा भे होने लगी | जैसे ही वर्षा जल का बहाव नदी-नालों में कम होगा | पूरे जिले में बोरी बंधान बनाने का काम एक महाभियान और महोत्सव के रूप में होगा और इस वर्ष अल्प वर्षा से उत्पन्न हुई स्थिति का सामना जिले के लोग कर सकेंगे |
#जलं_रक्षति_रक्षितः (हम जल की रक्षा करें, जल हमारी रक्षा करेगा)






विजयादशमी सन्देश

#विजयादशमी संदेश ।
हर युग मे रावणीय प्रवृत्तियाँ जन्म लेती है और उनका विनाश होता है ।
-मोहन नागर
रावण एक दुष्प्रवृत्ति का नाम है । रावण अहंकार है । रावण आतंक का नाम है । रावण छल है कपट है । रावण का जीवन चरित्र पढ़ेंगे तो ध्यान में आएगा कि रावण काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर और हिंसा है । इतने दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति अगर परम ज्ञानी और विद्वान हो तो वह अपने ज्ञान और विद्वत्ता का उपयोग किसके लिए करेगा । स्वाभाविक है अपने स्वार्थ के लिए । इसके लिए अगर उसे किसी का अहित करना पड़े तो करेगा ।
रावण ने यही तो किया । दुनियाँ की सारी संपत्ति लूटकर अपने घर को सोने का बना लिया ।
रामायण में रावण के वध होने पर रावण की पत्नी मन्दोदरी विलाप करते हुए कहती है, "अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।"
इसलिए रावण को प्रतीक माना गया अधर्म, अन्याय, अहंकार और अनीति का ।
शास्त्रों में वर्णित है कि रावण अद्भुत विद्वान था और सभी शास्त्रों का ज्ञाता भी। वह महान ऋषि #पुलत्स्य का पौत्र और #विश्वश्रवा का पुत्र था। फिर अधर्म का प्रतीक क्यों माना गया? क्योंकि वह अमर्यादित और अहंकारी था। सत्ता के दंभ में चूर विधान से ऊपर था। #अलोकतांत्रिक था, इसलिए अधर्मी माना गया । और इसी कारण अत्यन्त बलशाली होने के बाद भी रावण मारा गया । एक साधारण वनवासी राम और उनकी सामान्य किन्तु संगठित सेना के हाथों अपने ही गढ़ में रावण परास्त हुआ । तभी हजारों हजार वर्ष से समाज ने राम-रावण युद्ध को याद रखा और उस स्मृति में अन्याय और बुराई के प्रतीक के रूप में रावण के पुतले का दहन होता आ रहा है । ताकि अन्याय और अहंकार का अंत मे क्या हश्र होता है, ये नई पीढ़ी याद रखे । हर युग मे रावणीय प्रवृत्तियां जन्म लेती है और अंततः उसका विनाश हो जाता है ।
आज पुनः हमारे देश मे रावण प्रवृत्ति के लोग समाज मे आकार ले रहे है । आतंकवाद, #अलगाववाद, नक्सलवाद, मतान्तरण, माओवाद, भ्रष्टाचार, जैसी राक्षसी रावणी प्रवृत्तियाँ मुँह बायें खड़ी है । #समाजतोड़क शक्तियाँ रावण के मामा मारीच का मायावी रूप धरकर आज के समाज को छल कपट द्वारा अपने मोहपाश में जकड़ने का षड्यंत्र कर रही है । #रावणीयमानसिकता से युक्त खरदूषण, त्रिसिरा, सूर्पनखा आज भी समाज को छिन्न-भिन्न करने के लिए मायावी रूप धरकर समाज को बरगलाने का काम कर रही है ।
आइये हम भी संगठित समाज (संघे शक्ति कलियुगे) का रूप धारणकर प्रभु श्रीराम का स्मरण कर इन रावणीय दुष्प्रवृत्तियों को परास्त करने का संकल्प लें और उसमें सिद्धि प्राप्त करें ।
#विजय_पर्व की बधाईयाँ-शुभकामनाएं ।

छद्म सेकुलर सोच

#सोचिये
दशहरा आया नहीं कि रावण के गुणगान शुरू ।
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#दीपावली के बीस दिन पहले ही ये मारे #प्रदूषण के खांसने लगेंगे ।
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जब भी कोई हिन्दू त्यौहार आता है तो ये धूर्त #लालगुलाम मानसिकता के लोग इन पर्वों से सम्बन्धित #मनगढ़ंत मिथक बनाकर सोशल मीडिया के बाजार में फर्जी आईडी से चेंप देते हैं ।
और फिर सोशल मीडिया में भोले-भाले नवे-नवेले आये अति उत्साही या लिबरल टाइप के फेसबुकिये उसे शेयर और कॉपी-पेस्ट शुरू कर देते हैं ।
जैसे>>>>>>>
- रावण ने #सूर्पनखा की नाक कटने पर पूरी लंका दाव पर लगा दी, बोलो बहिनों आपको रावण जैसा भाई चाहिए कि नहीं ?
और मूर्ख सेकुलर फेसबुकिये, मर्यादा पुरुषोत्तम राम की बजाय अमर्यादित अहंकारी रावण का गुणगान शुरू कर देते हैं ।
- रावण का पुतला कहता है "क्या मेरे बाद किसी ने बुरा काम नहीं किया समाज में, तो फिर मुझे ही क्यों जलाते हो ?
आज समाज मे सैंकड़ों रावण घूम रहे हैं, उन्हें भी जलाओ । और मुझे जलाने के लिए ये नकली राम नहीं, असली राम हो तो लाओ ।
- माँ दुर्गा को छप्पन भोग क्यों लगाते हो, बाहर भिखारी बैठा है, उसे खिलाओ, माँ प्रसन्न हो जाएगी ।
- एक तरफ शिव प्रतिमा पर दूध चढ़ाते हुए तथा एक फोटो में युगांडा के कुपोषित बच्चे का फोटो डालते हुए लिखते हैं कि ये दूध की जरूरत किसे है । सोचिये ।
- रक्षाबन्धन पर ये धूर्त चुटकुले लिखते हैं कि "यार आज तो घर से बाहर नहीं निकलूँगा, पता नहीं कौन राखी बांध दे ?
-दीपावली पर पटाखों की आवाजें और प्रदूषण ये यंत्रों से नापकर बताते हैं और 31 दिसम्बर पर इनके यंत्र खराब हो जाते हैं ।
- होली के समय होलिका दहन इन्हें एक अबला महिला को जिंदा जलाने की कुप्रथा लगती है ।
- बाकी गणेश स्थापना , देवी पूजा पर भी ये अनास्था पूर्ण टिप्पणियाँ लिखते हैं और #मूर्ख_सेकुलर उसे शेयर करते हैं ।
इसमे गौर करने लायक बात ये है कि #धूर्त_वामपंथी इस तरह के मिथक सिर्फ हिन्दू त्यौहारों पर ही बनाते हैं । अन्य मतावलंबियों के उत्सवों पर ये सात दिन पहले से "मुबारकवाद" शुरू कर देते हैं । हजारों-लाखों पशुओं की हत्या पर इनके मुँह में दहीं जम जाता है ।
20 दिसम्बर से ही ये खुद के बच्चे को सांताक्लाज बनाना शुरू कर देते हैं । और 31 दिसम्बर के पटाखों की आवाज इन्हें शायद शास्त्रीय संगीत के रूप में स्वरान्तर होकर सुनाई देती है ।
कुल मिलाकर आप देखेंगे कि केवल और केवल हिन्दू पर्व को ही ये मजाक ढकोसला सिद्ध करने का षड़यंत्र करते हैं ।
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इन मारीचों की मायावी आवाज को पहचानो। अपने पर्व अपनी रीति नीति और संस्कृति के अनुसार मनाओ । 

रावण दहन विवाद |

#सोचिये
मित्रों,
इन चर्च पोषित #लाल_गुलामों का यह अभियान #रावण के पुतले तक रुकने वाला नहीं है | उनका मिशन बहुत बड़ा है |
जो #तटस्थ हैं, वे नोट कर लें |
- इनका अगला निशाना माँ दुर्गा की स्थापना बन्द कराना है, क्योंकि माँ दुर्गा ने #महिषासुरका वध किया था और महिषासुर भी इनका #पूर्वज है |
- फिर इनका अगला लक्ष्य #होलिका_दहन पर रोक लगाना होगा, क्योंकि #हिरण्यकश्यपभी इनका पूर्वज है और इस हिसाब से होलिका इनकी आराध्य देवी हुई |
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असल में इस षड्यंत्र को पहचाने बिना कुछ लोग इनके बहकावे में आ रहे हैं |
वास्तविकता तो यह है कि भारतीय समाज मूलतः धर्मप्रेमी समाज है | जिसने चाँद-सूरज से लेकर कछुआ और साँप तक को देव तुल्य माना है और उसकी पूजा भी की है |
- हमारे पग-पग पर धर्म है | घर बनाना हो, खेत जोतना हो, फसल काटना हो, कुआ खोदना हो कोई भी कार्य बिना पूजा के प्रारम्भ और सम्पन्न नहीं होता |
देश के छः लाख गाँव में से आप किसी भी गाँव में चले जाओ | हर गाँव का कोई न कोई काकड़ (मेड़ा) देवता और ग्राम देवता आपको मिलेगा ही | इन्हें भाषा-बोली के कारण अलग-अलग नामों से जाना जाता है | कहीं खेड़ा पति, कहीं दैयत बाबा, भुणा जी महाराज आदि-आदि | ये मन्दिर प्रायः गाँव के बाहर एक किनारे पर होते थे | अब जनसँख्या बढ़ने से इनके चबूतरे गाँव के बीच में आ गए हैं | कांकड देव का स्थान गाँव की सबसे ऊँची जगह पर होता है | ये देवता हमें बाह्य शत्रुओं, प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों और महामारियों से बचाते थे, ऐसी मान्यता है | इनके नाम भी स्थानीय बोलियों और भाषाओं के कारण अलग-अलग है | संभवतया राऊन देव भी इसी प्रकार के ग्राम देवता का नाम हैं जिन्हें रावण की संज्ञा दी जा रही है |
- दूसरा, हमारे पूर्वजों को जिससे डर लगा या जिससे सुरक्षा चाहिए उसकी पूजा शुरू कर दी | आपको गाँव-गाँव में नाग बाबा या #नागदेव के #चबूतरे मिलेंगे | और वर्षा ऋतु में साँप काटने का डर सबसे ज्यादा रहता है, इसलिए उसी समय नाग देवता की पूजा की जाती है, जिससे कारण लोग उस ऋतु में सावधान हो जाए और साँप को मारे भी नहीं क्योंकि हमारी फसल नष्ट करने वाले जन्तुओं का साँप तेजी से सफाया करता है |
- लगभग हर गाँव में आपको वर्षा ऋतु के पूर्व भैंसासुर की पूजा करते हुए लोग मिल जायेंगे | देश के कई गेर आदिवासी गाँवों में भी #भैंसासुर के चबूतरे आपको मिल जायेंगे | अपनी फसल को जंगली जानवरों से चौपट होने से बचाने के लिए भैंसासुर की पूजा की जाती है | इसका #महिषासुर राक्षस से कोई सम्बन्ध नहीं हैं |
- भारत के गाँव-गाँव में वर्षा ऋतु के पूर्व इस वर्ष "अच्छी वर्षा" के लिए #इन्द्रदेव की पूजा करने की परम्परा है | इसे कहीं सोम पूजा, इन्द्र पूजा, इंदल पूजा आदि नाम से होती है | सतपुड़ा के क्षेत्र में यह #मेघनाथ के नाम से जानी जाती है जो वर्षा के पूर्व भगवान मेघनाथ "मेघों के नाथ" अर्थात इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए की जाती है | इसका रावण के पुत्र#मेघनाद से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं हैं |
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लैकिन आज जो कुछ चल रहा है, वह एक सोची-समझी साजिश के तहत हिन्दू समाज को छिन्न-भिन्न करने के प्रयास है | जब दो सौ साल अंग्रेज यहाँ मिशनरियों के साथ रहे और वे योजना के तहत बीसवीं सदी में भारत को ईसाई राष्ट्र बनाए बिना ही यहाँ से चले गए | किन्तु उनके साथ मिशनरियां नहीं गई | वे यहीं हिंदुओं का विशेषकर जनजाति समाज के मतांतरण में सत्ता और विदेशी सहायता के माध्यम से शिक्षा और स्वास्थ्य को केन्द्र बनाकर लिप्त रही |
जब उन्हें भी अपेक्षानुसार सफलता नहीं मिली तो फिर अन्तराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत उन्होंने नई चाल चली कि क्यों न पूरे जनजाति समाज को ही हिन्दू समाज से अलग कर दिया जाए | और फिर उन्होंने कुतर्क गढ़े कि आदिवासी समाज हिन्दू समाज का अंग नहीं हैं | इसके लिए उन्होंने ईसाई हो चुके उनके ही शिक्षा संस्थानों में उच्च शिक्षित लोगों का उपयोग किया | हर जनजाति को हिन्दू समाज से तोड़ने का अलग-अलग किस्सा बनाया गया |
और सबसे पहला प्रयोग उन्होंने झारखंड में शुरू किया कि जनगणना के दौरान कोई भी जनजाति परिवार धर्म के कालम में हिन्दू या किसी भी धर्म का उल्लेख नहीं करेगा | यानी कि हमारा कोई भी धर्म नहीं हैं | झारखंड के चार जिलों में उन्हें अपेक्षित सफलता पिछली २०११ की जनगणना मे मिली और वहाँ कुछ विकासखण्ड हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए | इसी को#झारखंड_पेटर्न के नाम से देश के हर जनजाति बहुल क्षेत्र में वे लागू करना चाहते हैं | जब यह अधिसंख्य हो जायेगा तब वे अपना अलग "रिलीजन कोड" मांगेंगे |
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रावण, महिषासुर, होलिका, हिरण्यकश्यप जैसे पात्रों को आदर्श बनाकर पहले हिन्दू धर्म की मुख्यधारा से जनजाति समाज को विलग करना इन समाजतोड़क शक्तियों का मुख्य लक्ष्य है | अलग करने के बाद उनको आसानी हो जायेगी, मतांतरित करने में | और मतांतरण अंततः राष्ट्रांतरण ही होता है |

Saturday 23 September 2017

प्राचीन मौसम विज्ञान

#घाघ_भड्डरी की कहावतों को परखें | कल श्रावण शुक्ल सप्तमी हैं | अपने-अपने स्थान का मौसम जांचें |

'श्रावण शुक्ला सप्तमी, डूब के उगे भान,
तब ले देव बरिसिहैं, जब सो देव उठान।'
-सावन शुक्ल सप्तमी को यदि सूर्य बदली में डूब कर उगे तो कार्तिक माह में देवोत्थान एकादशी तक अवश्य वर्षा होती है।
'श्रावण शुक्ला सप्तमी, उगत दिखे जो भान,
या जल मिलिहैं कूप में, या गंगा स्नान।'
-यानि सावन माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को प्रात: सूर्य का उगना दिखे तो घाघ के अनुसार निश्चित रूप से सूखा पड़ेगा।
सावन सुक्ला सत्तमी, जो गरजे अधिरात।
तू पिय जाओ मालवा, हम जायें गुजरात।।
-यदि श्रावण शुक्ल सप्तमी को अर्धरात्रि में बादल गरजें, तो हे प्रिय तुम मालवा चले जाना और मैं गुजरात चली जाऊँगी अर्थात् अकाल पड़ने वाला है |
सावन सुक्ला सत्तमी, गगन स्वच्छ जो होय।
कहै घाघ सुन भड्डरी, पुहुमी खेती खोय।।
- सावन महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को यदि आसमान साफ हो तो घाघ कहतें हैं कि हे भड्डरी! यह जान लो कि अकाल पड़ने वाला है और खेती नष्ट हो जायेगी।
सावन मास बहै पुरवाई।
बरधा बेंचि बेसाहो गाई।।
- जब श्रावण मास में पुरवाई चले तो कृषक को चाहिए कि वह अपने बैलों को बेचकर गाय खरीद ले क्योंकि सूखा पड़ने के आसार हैं जिसमें खेती नहीं हो सकेगी।
सावन सूखा स्यारी।
भादौं सूखा उन्हारी।
स्यार-खरीफ। उन्हारी-रबी की फसल।
- यदि सावन मास में वर्षा न हुई तो खरीफ की फसल को अत्यधिक नुकसान होता है इसी प्रकार यदि भादों में वर्षा न हुई तो रबी की फसल नष्ट हो जाती है।

Friday 7 April 2017

#अखण्ड_भारत_का_केन्द्र_बिन्दु 
बात १९९२-९३ की है | आमला ( भारतीय वायुसेना का शस्त्रागार) में १४ अगस्त को अखण्ड भारत स्मृति दिवस का आयोजन था | जिसमें प्रोफ़ेसर सदानन्द सप्रे जी का भाषण होना था | हमने आमला नगर में खूब प्रचार किया | सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी भी काफी संख्या में कार्यक्रम में आये | शेष बड़ी संख्या में वायुसेना के अधिकारियों ने दूर खड़े होकर सप्रे जी का अखण्ड भारत विषय पर प्रेरक उद्बोधन सुना | कार्यक्रम के बाद सेना के अधिकारियों ने बताया कि आप जिस अखण्ड भारत की बात करते हैं उस अखण्ड भारत का केन्द्र बिन्दु तो यहीं पास में बरसाली नामक गाँव में हैं | हमारी उत्सुकता जगी | मैं कुछ युवा साथियों को लेकर बरसाली गया, सतपुड़ा की सुरम्य और उत्तुंग पर्वत श्रंखलाओं के मध्य बैतूल से १४ किलोमीटर दूर ग्राम बरसाली यूँ तो बैतूल जिले का एक बहुत सामान्य सा गाँव है, जहाँ लोग खेती और पशुपालन द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं | गन्ने की खेती के लिए भी यह क्षेत्र प्रसिद्ध है | कभी यह क्षेत्र खेड़ला किला (बरसाली से दस किलोमीटर दूर) के गौरवमयी इतिहास के साथ जुड़ा, जहाँ सैंकडों वर्षों तक गौंड राजाओं का राज्य रहा | अजंता-एलोरा की गुफाएं बनाने वाले "राजा इल" के समृद्धशाली राज्य का भी यह हिस्सा रहा | खेड़ला किला पर मराठी का आद्द्य ग्रन्थ "विवेक सिंधु" की रचना महाकवि संत मुकुन्द स्वामी जी ने की | 
 खैर ..लोगों से चर्चा करने पर ध्यान आया कि गाँव के लोग उस स्थान को एक देव स्थान के रूप में मानते हैं | अखण्ड भारत के केन्द्र बिन्दु होने की बात पहली बार हमने उनको बताई | जब केन्द्र बिन्दु स्थान पर पहुँचे तो वहाँ एक बड़ा सा पत्थर पहाड़ी के नीचे पड़ा था, जिस पर अस्पष्ट कुछ लिखा हुआ है | गाँव के लोग इस पत्थर को सैंकडों वर्ष पुराना मानते हैं तथा पीढ़ी दर पीढ़ी देखते आ रहे हैं | मान्यताओं के अनुसार यही वह पत्थर है जो राजा टोडरमल (राजा टोडरमल ने विश्व की प्रथम भूमि लेखा-जोखा एवं मापन प्रणाली तैयार की थी) ने लगभग ५०० वर्ष पूर्व अखण्ड भारत के केन्द्र बिन्दु के रूप में यहाँ स्थापित किया था | ग्राम बरसाली जम्मू से कन्याकुमारी रेलमार्ग पर मध्य रेलवे के इटारसी - नागपुर रेल खण्ड पर स्टेशन के पास स्थित है। यहाँ पेसेंजर गाडियां रुकती है |
इस बीच कई बार केन्द्र बिन्दु पर जाना हुआ | बैतूल के सुधी नागरिकों ने उस पत्थर को स्थापित करवाया | 
८ फरवरी २०१७ को बैतूल में सम्पन्न ऐतिहासिक हिन्दू सम्मेलन के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक मोहनराव जी भागवत ने भी बैतूल का उल्लेख अखण्ड भारत के केन्द्र बिन्दु के रूप में किया | तब से पुनः उस स्थान पर जाने की इच्छा थी | आज श्री सुरेन्द्र जी सोलंकी, श्री बुधपाल सिंह जी और श्री Anand Prajapati जी के साथ बरसाली जाना हुआ | ग्राम सरपंच श्री पुरुषोत्तम यादव जी के साथ ग्रामीणों से विस्तृत चर्चा हुई | ग्राम बुजुर्गों ने बताया कि यह लगभग दस फिट की शिला थी जिसमे से आधी शिला कई वर्ष पूर्व ग्राम मोरनढाना के कोई केशव पटेल जी ले गए , जिसकी उन्होंने श्री हनुमान जी की प्रतिमा बनाकर गाँव में स्थापित की |
सरपंच महोदय ने बताया कि यहाँ वायुसेना के बहुत से अधिकारी आते रहते हैं | गाँव के लोग वार-त्यौहार पर शिला के सम्मुख दीप जलाते हैं | वहाँ तक पहुँचने का मार्ग दुर्गम है | इस स्थान की एक ओर विशेषता है कि यहाँ की मुख्य पहाड़ी पश्चिम छोर का पानी माचना नदी से तवा होते हुए नर्मदा मैया के द्वारा सिंधु (अरब) सागर में जाता है तथा पूर्व दिशा का पानी बेल नदी के द्वारा कान्हान होते हुए वर्धा नदी से वेनगंगा होते हुए माँ गोदावरी के द्वारा गंगा सागर (बंगाल की खाड़ी) में मिलती है |
गाँव वालों की इच्छा है कि यहाँ पर्यटक स्थल बनें और हमारा गाँव पुनः दुनियाँ के नक़्शे में दिखने लगे | 
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कुछ भी हो...बैतूल है बहुत अद्भुत...अखण्ड भारत बनाने का एक सूत्र भी यहाँ विद्यमान है |
#भारत_माता_की_जय

Thursday 23 February 2017

|| #सोनाघाटी की पहाड़ी और #सतपुड़ा_के_घने_जंगल ||

|| #सोनाघाटी की पहाड़ी और #सतपुड़ा_के_घने_जंगल ||
देवाधिदेव महादेव की कृपा से महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सोनाघाटी शिव मन्दिर के दर्शन करने का सिलसिला जो १९९२ से प्रारम्भ हुआ आज तक जारी है | सोनाघाटी बैतूल की वह पहाड़ी है जिसने बैतूल के पर्यावरण को अब तक सम बनाकर रखा था | पिछले दस-पन्द्रह वर्षों में इस पहाड़ी को छिन्न-भिन्न करने का जो पाप किया जा रहा है, उसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे है | फोरलेन ने तो इस पहाड़ी का कबाड़ा ही कर दिया | कभी मार्च अन्त तक घरों में पंखे बन्द रखने वाला बैतूल अब फरवरी में ही तपने लगा है | कभी वर्ष भर सुन्दर बहने वाली सोनाघाटी पहाड़ी से निकली नदी अब गंदे नाले में बदल गई है |
सोनाघाटी की श्रंखलाबद्ध पहाड़ी को पहली बार १८९३-९४ में काटा गया था जब इटारसी-नागपुर रेलवे लाईन बिछाई गई थी | लैकिन तब जंगल घना होने तथा पहाड़ी को तिरछा काटने से बैतूल नगर के तापमान में कोई विशेष अंतर नहीं आया होगा | उसी समय यह पहाड़ी दो भागों में विभाजित हुई और कभी एक ही पहाड़ी पर बने शिव और हनुमान मन्दिर पृथक हो गए |
परन्तु जंगल तब भी बहुत घना रहा होगा, यह इस बात से सिद्ध होता है कि प्रकृति के चितेरे कवि दादा #भवानीप्रसाद_मिश्र ने सोनाघाटी की इसी पहाड़ी पर बैठकर १९३९ में अपनी कालजयी रचना “सतपुड़ा के घने जंगल, ऊँघते अनमने जंगल” लिखी थी | बैतूल और दादा भवानी प्रसाद मिश्र जी के जानने वालों का मानना है कि यह रचना दादा ने हनुमान मन्दिर की पहाड़ी पर बैठकर लिखी थी | तब से हर वर्ष मैं भगवान शिव और बजरंग बली के साथ उस शिला को भी नमन करके आता हूँ |
अभी दो वर्ष पूर्व मिश्र जी के जन्मशताब्दी वर्ष में हमारे विद्यालय भारत भारती ने इस कालजयी रचना को सोनाघाटी से महज डेढ़ किलोमीटर दूर अपने विद्यालय परिसर में पत्थर पर खुदवाकर धरोहर बनाया है और मिश्र जी का जो जंगल अब बीस किलोमीटर दूर चला गया उसकी भरपाई के लिए पौधरोपण और संरक्षण का कार्य भी भारत भारती के द्वारा हो रहा है |
जब इस कविता को पत्थर पर खुदवाने की जानकारी भवानीप्रसाद मिश्र जी के बेटे व प्रसिद्ध पर्यावरणविद #अनुपम_मिश्र जी (दिल्ली) को मिली तो उन्होंने मुझे फोन कर खूब प्रशंसा की तथा एक बार भारत भारती आकर शिलालेख को देखने की तीव्र इच्छा प्रकट की थी | किन्तु शायद ईश्वर को यह स्वीकार नहीं था अनुपम जी यह शिलालेख देखे बिना ही इस नश्वर संसार से विदा हो गए |
हम बैतूलवासियों को प्रकृति के चितेरे और रक्षक पिता-पुत्र (दादा भवानी प्रसाद और अनुपम मिश्र जी) को अगर सच्ची श्रद्धांजलि देना है तो सम्पूर्ण सोनाघाटी की पहाड़ियों को न केवल बचाना पड़ेगा अपितु उसे हरियाली साड़ी पहनाकर श्रंगार कर रहे Arun Singh Bhadoriya जी जैसे प्रकृति पुजारियाँ का सहयोग भी करना होगा | पहाड़ों को बचाने के लिए ही हमारे पूर्वजों ने वहाँ देवालय स्थापित किये हैं | यह पूज्य भाव भी समाज का बना रहे, देवताओं के साथ पहाड़ और पेड़ भी पुजते रहे | यही आज का शिव संकल्प है | इति | -मोहन नागर
(आज प्रातः सोनाघाटी से लिए कुछ चित्र)
#महाशिवरात्रि की सभी मित्रों-शुभचिन्तकों को बधाईयाँ-शुभकामनाएँ |