Sunday 1 October 2017

विजयादशमी सन्देश

#विजयादशमी संदेश ।
हर युग मे रावणीय प्रवृत्तियाँ जन्म लेती है और उनका विनाश होता है ।
-मोहन नागर
रावण एक दुष्प्रवृत्ति का नाम है । रावण अहंकार है । रावण आतंक का नाम है । रावण छल है कपट है । रावण का जीवन चरित्र पढ़ेंगे तो ध्यान में आएगा कि रावण काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर और हिंसा है । इतने दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति अगर परम ज्ञानी और विद्वान हो तो वह अपने ज्ञान और विद्वत्ता का उपयोग किसके लिए करेगा । स्वाभाविक है अपने स्वार्थ के लिए । इसके लिए अगर उसे किसी का अहित करना पड़े तो करेगा ।
रावण ने यही तो किया । दुनियाँ की सारी संपत्ति लूटकर अपने घर को सोने का बना लिया ।
रामायण में रावण के वध होने पर रावण की पत्नी मन्दोदरी विलाप करते हुए कहती है, "अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।"
इसलिए रावण को प्रतीक माना गया अधर्म, अन्याय, अहंकार और अनीति का ।
शास्त्रों में वर्णित है कि रावण अद्भुत विद्वान था और सभी शास्त्रों का ज्ञाता भी। वह महान ऋषि #पुलत्स्य का पौत्र और #विश्वश्रवा का पुत्र था। फिर अधर्म का प्रतीक क्यों माना गया? क्योंकि वह अमर्यादित और अहंकारी था। सत्ता के दंभ में चूर विधान से ऊपर था। #अलोकतांत्रिक था, इसलिए अधर्मी माना गया । और इसी कारण अत्यन्त बलशाली होने के बाद भी रावण मारा गया । एक साधारण वनवासी राम और उनकी सामान्य किन्तु संगठित सेना के हाथों अपने ही गढ़ में रावण परास्त हुआ । तभी हजारों हजार वर्ष से समाज ने राम-रावण युद्ध को याद रखा और उस स्मृति में अन्याय और बुराई के प्रतीक के रूप में रावण के पुतले का दहन होता आ रहा है । ताकि अन्याय और अहंकार का अंत मे क्या हश्र होता है, ये नई पीढ़ी याद रखे । हर युग मे रावणीय प्रवृत्तियां जन्म लेती है और अंततः उसका विनाश हो जाता है ।
आज पुनः हमारे देश मे रावण प्रवृत्ति के लोग समाज मे आकार ले रहे है । आतंकवाद, #अलगाववाद, नक्सलवाद, मतान्तरण, माओवाद, भ्रष्टाचार, जैसी राक्षसी रावणी प्रवृत्तियाँ मुँह बायें खड़ी है । #समाजतोड़क शक्तियाँ रावण के मामा मारीच का मायावी रूप धरकर आज के समाज को छल कपट द्वारा अपने मोहपाश में जकड़ने का षड्यंत्र कर रही है । #रावणीयमानसिकता से युक्त खरदूषण, त्रिसिरा, सूर्पनखा आज भी समाज को छिन्न-भिन्न करने के लिए मायावी रूप धरकर समाज को बरगलाने का काम कर रही है ।
आइये हम भी संगठित समाज (संघे शक्ति कलियुगे) का रूप धारणकर प्रभु श्रीराम का स्मरण कर इन रावणीय दुष्प्रवृत्तियों को परास्त करने का संकल्प लें और उसमें सिद्धि प्राप्त करें ।
#विजय_पर्व की बधाईयाँ-शुभकामनाएं ।

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