#सोचिये
मित्रों,
इन चर्च पोषित #लाल_गुलामों का यह अभियान #रावण के पुतले तक रुकने वाला नहीं है | उनका मिशन बहुत बड़ा है |
जो #तटस्थ हैं, वे नोट कर लें |
- इनका अगला निशाना माँ दुर्गा की स्थापना बन्द कराना है, क्योंकि माँ दुर्गा ने #महिषासुरका वध किया था और महिषासुर भी इनका #पूर्वज है |
मित्रों,
इन चर्च पोषित #लाल_गुलामों का यह अभियान #रावण के पुतले तक रुकने वाला नहीं है | उनका मिशन बहुत बड़ा है |
जो #तटस्थ हैं, वे नोट कर लें |
- इनका अगला निशाना माँ दुर्गा की स्थापना बन्द कराना है, क्योंकि माँ दुर्गा ने #महिषासुरका वध किया था और महिषासुर भी इनका #पूर्वज है |
- फिर इनका अगला लक्ष्य #होलिका_दहन पर रोक लगाना होगा, क्योंकि #हिरण्यकश्यपभी इनका पूर्वज है और इस हिसाब से होलिका इनकी आराध्य देवी हुई |
======================
असल में इस षड्यंत्र को पहचाने बिना कुछ लोग इनके बहकावे में आ रहे हैं |
वास्तविकता तो यह है कि भारतीय समाज मूलतः धर्मप्रेमी समाज है | जिसने चाँद-सूरज से लेकर कछुआ और साँप तक को देव तुल्य माना है और उसकी पूजा भी की है |
- हमारे पग-पग पर धर्म है | घर बनाना हो, खेत जोतना हो, फसल काटना हो, कुआ खोदना हो कोई भी कार्य बिना पूजा के प्रारम्भ और सम्पन्न नहीं होता |
देश के छः लाख गाँव में से आप किसी भी गाँव में चले जाओ | हर गाँव का कोई न कोई काकड़ (मेड़ा) देवता और ग्राम देवता आपको मिलेगा ही | इन्हें भाषा-बोली के कारण अलग-अलग नामों से जाना जाता है | कहीं खेड़ा पति, कहीं दैयत बाबा, भुणा जी महाराज आदि-आदि | ये मन्दिर प्रायः गाँव के बाहर एक किनारे पर होते थे | अब जनसँख्या बढ़ने से इनके चबूतरे गाँव के बीच में आ गए हैं | कांकड देव का स्थान गाँव की सबसे ऊँची जगह पर होता है | ये देवता हमें बाह्य शत्रुओं, प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों और महामारियों से बचाते थे, ऐसी मान्यता है | इनके नाम भी स्थानीय बोलियों और भाषाओं के कारण अलग-अलग है | संभवतया राऊन देव भी इसी प्रकार के ग्राम देवता का नाम हैं जिन्हें रावण की संज्ञा दी जा रही है |
- दूसरा, हमारे पूर्वजों को जिससे डर लगा या जिससे सुरक्षा चाहिए उसकी पूजा शुरू कर दी | आपको गाँव-गाँव में नाग बाबा या #नागदेव के #चबूतरे मिलेंगे | और वर्षा ऋतु में साँप काटने का डर सबसे ज्यादा रहता है, इसलिए उसी समय नाग देवता की पूजा की जाती है, जिससे कारण लोग उस ऋतु में सावधान हो जाए और साँप को मारे भी नहीं क्योंकि हमारी फसल नष्ट करने वाले जन्तुओं का साँप तेजी से सफाया करता है |
- लगभग हर गाँव में आपको वर्षा ऋतु के पूर्व भैंसासुर की पूजा करते हुए लोग मिल जायेंगे | देश के कई गेर आदिवासी गाँवों में भी #भैंसासुर के चबूतरे आपको मिल जायेंगे | अपनी फसल को जंगली जानवरों से चौपट होने से बचाने के लिए भैंसासुर की पूजा की जाती है | इसका #महिषासुर राक्षस से कोई सम्बन्ध नहीं हैं |
- भारत के गाँव-गाँव में वर्षा ऋतु के पूर्व इस वर्ष "अच्छी वर्षा" के लिए #इन्द्रदेव की पूजा करने की परम्परा है | इसे कहीं सोम पूजा, इन्द्र पूजा, इंदल पूजा आदि नाम से होती है | सतपुड़ा के क्षेत्र में यह #मेघनाथ के नाम से जानी जाती है जो वर्षा के पूर्व भगवान मेघनाथ "मेघों के नाथ" अर्थात इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए की जाती है | इसका रावण के पुत्र#मेघनाद से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं हैं |
=================
लैकिन आज जो कुछ चल रहा है, वह एक सोची-समझी साजिश के तहत हिन्दू समाज को छिन्न-भिन्न करने के प्रयास है | जब दो सौ साल अंग्रेज यहाँ मिशनरियों के साथ रहे और वे योजना के तहत बीसवीं सदी में भारत को ईसाई राष्ट्र बनाए बिना ही यहाँ से चले गए | किन्तु उनके साथ मिशनरियां नहीं गई | वे यहीं हिंदुओं का विशेषकर जनजाति समाज के मतांतरण में सत्ता और विदेशी सहायता के माध्यम से शिक्षा और स्वास्थ्य को केन्द्र बनाकर लिप्त रही |
जब उन्हें भी अपेक्षानुसार सफलता नहीं मिली तो फिर अन्तराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत उन्होंने नई चाल चली कि क्यों न पूरे जनजाति समाज को ही हिन्दू समाज से अलग कर दिया जाए | और फिर उन्होंने कुतर्क गढ़े कि आदिवासी समाज हिन्दू समाज का अंग नहीं हैं | इसके लिए उन्होंने ईसाई हो चुके उनके ही शिक्षा संस्थानों में उच्च शिक्षित लोगों का उपयोग किया | हर जनजाति को हिन्दू समाज से तोड़ने का अलग-अलग किस्सा बनाया गया |
और सबसे पहला प्रयोग उन्होंने झारखंड में शुरू किया कि जनगणना के दौरान कोई भी जनजाति परिवार धर्म के कालम में हिन्दू या किसी भी धर्म का उल्लेख नहीं करेगा | यानी कि हमारा कोई भी धर्म नहीं हैं | झारखंड के चार जिलों में उन्हें अपेक्षित सफलता पिछली २०११ की जनगणना मे मिली और वहाँ कुछ विकासखण्ड हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए | इसी को#झारखंड_पेटर्न के नाम से देश के हर जनजाति बहुल क्षेत्र में वे लागू करना चाहते हैं | जब यह अधिसंख्य हो जायेगा तब वे अपना अलग "रिलीजन कोड" मांगेंगे |
==========
रावण, महिषासुर, होलिका, हिरण्यकश्यप जैसे पात्रों को आदर्श बनाकर पहले हिन्दू धर्म की मुख्यधारा से जनजाति समाज को विलग करना इन समाजतोड़क शक्तियों का मुख्य लक्ष्य है | अलग करने के बाद उनको आसानी हो जायेगी, मतांतरित करने में | और मतांतरण अंततः राष्ट्रांतरण ही होता है |
======================
असल में इस षड्यंत्र को पहचाने बिना कुछ लोग इनके बहकावे में आ रहे हैं |
वास्तविकता तो यह है कि भारतीय समाज मूलतः धर्मप्रेमी समाज है | जिसने चाँद-सूरज से लेकर कछुआ और साँप तक को देव तुल्य माना है और उसकी पूजा भी की है |
- हमारे पग-पग पर धर्म है | घर बनाना हो, खेत जोतना हो, फसल काटना हो, कुआ खोदना हो कोई भी कार्य बिना पूजा के प्रारम्भ और सम्पन्न नहीं होता |
देश के छः लाख गाँव में से आप किसी भी गाँव में चले जाओ | हर गाँव का कोई न कोई काकड़ (मेड़ा) देवता और ग्राम देवता आपको मिलेगा ही | इन्हें भाषा-बोली के कारण अलग-अलग नामों से जाना जाता है | कहीं खेड़ा पति, कहीं दैयत बाबा, भुणा जी महाराज आदि-आदि | ये मन्दिर प्रायः गाँव के बाहर एक किनारे पर होते थे | अब जनसँख्या बढ़ने से इनके चबूतरे गाँव के बीच में आ गए हैं | कांकड देव का स्थान गाँव की सबसे ऊँची जगह पर होता है | ये देवता हमें बाह्य शत्रुओं, प्राकृतिक आपदाओं, बीमारियों और महामारियों से बचाते थे, ऐसी मान्यता है | इनके नाम भी स्थानीय बोलियों और भाषाओं के कारण अलग-अलग है | संभवतया राऊन देव भी इसी प्रकार के ग्राम देवता का नाम हैं जिन्हें रावण की संज्ञा दी जा रही है |
- दूसरा, हमारे पूर्वजों को जिससे डर लगा या जिससे सुरक्षा चाहिए उसकी पूजा शुरू कर दी | आपको गाँव-गाँव में नाग बाबा या #नागदेव के #चबूतरे मिलेंगे | और वर्षा ऋतु में साँप काटने का डर सबसे ज्यादा रहता है, इसलिए उसी समय नाग देवता की पूजा की जाती है, जिससे कारण लोग उस ऋतु में सावधान हो जाए और साँप को मारे भी नहीं क्योंकि हमारी फसल नष्ट करने वाले जन्तुओं का साँप तेजी से सफाया करता है |
- लगभग हर गाँव में आपको वर्षा ऋतु के पूर्व भैंसासुर की पूजा करते हुए लोग मिल जायेंगे | देश के कई गेर आदिवासी गाँवों में भी #भैंसासुर के चबूतरे आपको मिल जायेंगे | अपनी फसल को जंगली जानवरों से चौपट होने से बचाने के लिए भैंसासुर की पूजा की जाती है | इसका #महिषासुर राक्षस से कोई सम्बन्ध नहीं हैं |
- भारत के गाँव-गाँव में वर्षा ऋतु के पूर्व इस वर्ष "अच्छी वर्षा" के लिए #इन्द्रदेव की पूजा करने की परम्परा है | इसे कहीं सोम पूजा, इन्द्र पूजा, इंदल पूजा आदि नाम से होती है | सतपुड़ा के क्षेत्र में यह #मेघनाथ के नाम से जानी जाती है जो वर्षा के पूर्व भगवान मेघनाथ "मेघों के नाथ" अर्थात इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए की जाती है | इसका रावण के पुत्र#मेघनाद से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं हैं |
=================
लैकिन आज जो कुछ चल रहा है, वह एक सोची-समझी साजिश के तहत हिन्दू समाज को छिन्न-भिन्न करने के प्रयास है | जब दो सौ साल अंग्रेज यहाँ मिशनरियों के साथ रहे और वे योजना के तहत बीसवीं सदी में भारत को ईसाई राष्ट्र बनाए बिना ही यहाँ से चले गए | किन्तु उनके साथ मिशनरियां नहीं गई | वे यहीं हिंदुओं का विशेषकर जनजाति समाज के मतांतरण में सत्ता और विदेशी सहायता के माध्यम से शिक्षा और स्वास्थ्य को केन्द्र बनाकर लिप्त रही |
जब उन्हें भी अपेक्षानुसार सफलता नहीं मिली तो फिर अन्तराष्ट्रीय षड्यंत्र के तहत उन्होंने नई चाल चली कि क्यों न पूरे जनजाति समाज को ही हिन्दू समाज से अलग कर दिया जाए | और फिर उन्होंने कुतर्क गढ़े कि आदिवासी समाज हिन्दू समाज का अंग नहीं हैं | इसके लिए उन्होंने ईसाई हो चुके उनके ही शिक्षा संस्थानों में उच्च शिक्षित लोगों का उपयोग किया | हर जनजाति को हिन्दू समाज से तोड़ने का अलग-अलग किस्सा बनाया गया |
और सबसे पहला प्रयोग उन्होंने झारखंड में शुरू किया कि जनगणना के दौरान कोई भी जनजाति परिवार धर्म के कालम में हिन्दू या किसी भी धर्म का उल्लेख नहीं करेगा | यानी कि हमारा कोई भी धर्म नहीं हैं | झारखंड के चार जिलों में उन्हें अपेक्षित सफलता पिछली २०११ की जनगणना मे मिली और वहाँ कुछ विकासखण्ड हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए | इसी को#झारखंड_पेटर्न के नाम से देश के हर जनजाति बहुल क्षेत्र में वे लागू करना चाहते हैं | जब यह अधिसंख्य हो जायेगा तब वे अपना अलग "रिलीजन कोड" मांगेंगे |
==========
रावण, महिषासुर, होलिका, हिरण्यकश्यप जैसे पात्रों को आदर्श बनाकर पहले हिन्दू धर्म की मुख्यधारा से जनजाति समाज को विलग करना इन समाजतोड़क शक्तियों का मुख्य लक्ष्य है | अलग करने के बाद उनको आसानी हो जायेगी, मतांतरित करने में | और मतांतरण अंततः राष्ट्रांतरण ही होता है |
No comments:
Post a Comment