#गाय_बचा_लो
आज के परिवेश में घर में गोपालन कठिन है | गाँवों में भी अब धीरे-धीरे नगरों के समान घर बनने लगे हैं | पहले घर के बाहर चबूतरा, घर के अंदर प्रवेश करते ही सबसे पहले गाय का कोठा उसके बाद आँगन और फिर अन्य आवश्यक कमरे, रसोई आदि होते थे | बदलते युग में अब वह सब छूटता जा रहा है | आधुनिक रहन-सहन तथा कई विवशताओं के कारण अब यह सब सम्भव भी नहीं हैं |
किन्तु खेती और परिवार के स्वास्थ्य के लिए गोपालन तो आवश्यक है | इसलिए समझदार किसान अपने खेत-कुए पर ही झोपड़े बनाकर वहीं गोपालन करते हैं | खेत का रखवाला या घर का कोई सदस्य उनकी देखरेख करता है | लैकिन यह संख्या नगण्य है |
हिन्दू धर्म में अत्यन्त उपयोगी पेड़, वनस्पति, जीव-जन्तु को पूज्य स्थान पर रखा गया है | गाय उनमे से एक है | गाय केवल मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं तो पञ्च महाभूत (क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा) की रक्षा के लिए आवश्यक है | अनेक वैज्ञानिक कसौटियों पर यह कसा जा चुका है, इसे बार-बार सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं हैं | पृथ्वी पर गाय खत्म होने से अनेक संकट खड़े हो जायेंगे | यह धीरे-धीरे होने भी लगा है |
जैसे माँ के मर जाने से छोटे बच्चों की क्या स्थिति हो जाती है | वही स्थिति सम्पूर्ण जीव-जन्तुओं की हो जायेगी | इसलिए गाय को "विश्वस्य मातरः" कहा गया है |
भारत में विज्ञान को धर्म के माध्यम से ही बताया गया है | इसलिए गाय को धार्मिक मान्यता देकर उसमे सभी देवों का वास बताकर माता का दर्जा दिया गया | सदियों तक भारतीय समाज ने इसका पालन भी किया | अभी भी कोई सब कुछ खत्म नहीं हुआ है |
किन्तु जिस मात्रा में आवश्यक है उतना आज के परिवेश में गो का पालन, संवर्धन और संरक्षण एक चुनौती है | लगातार होते औद्योगीकरण, खत्म होते चरागाह, रासायनिक तथा मशीनीकृत खेती के कारण गाय के लिए सड़कों के अलावा कहीं जगह बची नहीं हैं | लैकिन मूल भारतीय समाज के मन में अभी भी गाय के लिए श्रद्धाभाव है | लैकिन वो विवश है | इसलिए पूरे देश की तरह गायें भी सरकारी तंत्र के भरोसे होकर दुर्दशा को प्राप्त हो गई |
गाय बचेगी तो सिर्फ किसान के खूंटे पर..| यह बात जब तक किसान को फिर से समझ न आ जाए तब तक गाय को गोशालाओं आदि में ही बचाना पढ़ेगा | सुधी जन गोशालाओं को समृद्ध करने की और ध्यान दें तथा समय-समय उसका निरीक्षण भी करें | बहुत जल्दी ही पुनः गोसेवा युग प्रारम्भ होगा | व्यर्थ के वाद-विवाद में न उलझते हुए बस इस थोड़े से संकट काल में गोमाता को बचा लें | यही प्रार्थना ..|
आज के परिवेश में घर में गोपालन कठिन है | गाँवों में भी अब धीरे-धीरे नगरों के समान घर बनने लगे हैं | पहले घर के बाहर चबूतरा, घर के अंदर प्रवेश करते ही सबसे पहले गाय का कोठा उसके बाद आँगन और फिर अन्य आवश्यक कमरे, रसोई आदि होते थे | बदलते युग में अब वह सब छूटता जा रहा है | आधुनिक रहन-सहन तथा कई विवशताओं के कारण अब यह सब सम्भव भी नहीं हैं |
किन्तु खेती और परिवार के स्वास्थ्य के लिए गोपालन तो आवश्यक है | इसलिए समझदार किसान अपने खेत-कुए पर ही झोपड़े बनाकर वहीं गोपालन करते हैं | खेत का रखवाला या घर का कोई सदस्य उनकी देखरेख करता है | लैकिन यह संख्या नगण्य है |
हिन्दू धर्म में अत्यन्त उपयोगी पेड़, वनस्पति, जीव-जन्तु को पूज्य स्थान पर रखा गया है | गाय उनमे से एक है | गाय केवल मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं तो पञ्च महाभूत (क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा) की रक्षा के लिए आवश्यक है | अनेक वैज्ञानिक कसौटियों पर यह कसा जा चुका है, इसे बार-बार सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं हैं | पृथ्वी पर गाय खत्म होने से अनेक संकट खड़े हो जायेंगे | यह धीरे-धीरे होने भी लगा है |
जैसे माँ के मर जाने से छोटे बच्चों की क्या स्थिति हो जाती है | वही स्थिति सम्पूर्ण जीव-जन्तुओं की हो जायेगी | इसलिए गाय को "विश्वस्य मातरः" कहा गया है |
भारत में विज्ञान को धर्म के माध्यम से ही बताया गया है | इसलिए गाय को धार्मिक मान्यता देकर उसमे सभी देवों का वास बताकर माता का दर्जा दिया गया | सदियों तक भारतीय समाज ने इसका पालन भी किया | अभी भी कोई सब कुछ खत्म नहीं हुआ है |
किन्तु जिस मात्रा में आवश्यक है उतना आज के परिवेश में गो का पालन, संवर्धन और संरक्षण एक चुनौती है | लगातार होते औद्योगीकरण, खत्म होते चरागाह, रासायनिक तथा मशीनीकृत खेती के कारण गाय के लिए सड़कों के अलावा कहीं जगह बची नहीं हैं | लैकिन मूल भारतीय समाज के मन में अभी भी गाय के लिए श्रद्धाभाव है | लैकिन वो विवश है | इसलिए पूरे देश की तरह गायें भी सरकारी तंत्र के भरोसे होकर दुर्दशा को प्राप्त हो गई |
गाय बचेगी तो सिर्फ किसान के खूंटे पर..| यह बात जब तक किसान को फिर से समझ न आ जाए तब तक गाय को गोशालाओं आदि में ही बचाना पढ़ेगा | सुधी जन गोशालाओं को समृद्ध करने की और ध्यान दें तथा समय-समय उसका निरीक्षण भी करें | बहुत जल्दी ही पुनः गोसेवा युग प्रारम्भ होगा | व्यर्थ के वाद-विवाद में न उलझते हुए बस इस थोड़े से संकट काल में गोमाता को बचा लें | यही प्रार्थना ..|
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