|| बैतूल का पर्यावरण ||
#सोनाघाटी की पहाडियाँ पर्यावरण संतुलन के लिए #बैतूल नगर के लिए वरदान है | कभी इन्हीं पहाडियों पर आच्छादित घने वन के कारण अंग्रेजों ने यहाँ अपनी बस्ती बसाई थी | इन्हीं पहाडियों पर बैठकर महाकवि दादा #भवानीप्रसाद_मिश्र ने १९३९ में अपनी कालजयी रचना "#सतपुड़ा_के_घने_जंगल-ऊँघते अनमने जंगल" लिखी थी | बैतूल के पूर्व से पश्चिम की तरफ घेरे रखने वाली ये पहाडियाँ अब लगभग वृक्षविहीन है | लेंटाना सहित कुछ अन्य काँटेदार जंगली झाडियाँ भर बची है | हर साल पुराने वृक्षों के ठूँठों से सिसकती बड़ी होती डालियों को लोग नोच ले जाते हैं | पहाडियों के कई हिस्से अवैध उत्खनन के कारण क्षत-विक्षत है | लगातार खुदाई तथा बचे हुए छोटे-बड़े पेड़ों की अवैध कटाई देखकर ऐसा लगता है मानो पूरा बैतूल इन पहाडियों को जितनी जल्दी हो खा जाना चाहता है |
वर्ष २०१६ बैतूल इतना गरम कभी नहीं हुआ | मैं भारत भारती में पिछले बीस साल से रह रहा हूँ | हर मौसम में #भारत_भारती में बैतूल से दो-तीन डिग्री तापमान कम रहता है | लैकिन पिछले दो वर्ष से भारत भारती क्षेत्र का पर्यावरण भी खराब हो गया | इसका सबसे बड़ा कारण फोरलेन के लिए खोदी गई सोनाघाटी की पहाड़ी है | जो पूर्व , उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम की ओर घने जंगलों से से आने वाली ठंडी हवाओं को वर्ष भर रोकती थी | इसे के कारण यहाँ गर्मी कम पड़ती थी तथा वर्षा भी सम होती थी | विशालकाय पहाड़ी खुद जाने से वह एक चिमनी या एक्जास पंखे का काम करने लग गई है |
भारत भारती के क्षेत्र में पिछले दो वर्षों से हो रही भयंकर ओलावृष्टि का मुख्य कारण भी मुझे यह पहाड़ी में बन गया विशालकाय बोगदा ही लगता है | खैर विकास का क्रम भी आवश्यक है किन्तु अब क्या किया जाए ?
बैतूल जिला शासन-प्रशासन ने इस वर्ष एक बड़ी पहल की है #ताप्ती_वन_महोत्सव के नाम से सोनाघाटी की एक पहाड़ी को नगर भर के लोगों ने हरी-भरी करने का संकल्प लिया है | कल बड़ी संख्या में यहाँ नीम के पौधे रोपे गए हैं | जल संवर्धन की दृष्टि से खन्तियाँ भी खोदी है |Collector Betul मा. पाटिल जी व्यक्तिगत रूचि लेकर यह कार्य कर रहे हैं |
बैतूल के सभी पर्यावरण प्रेमियों से आग्रह है कि इस वर्षा ऋतु में एक बार सोनाघाटी (पोलिटेक्निक कालेज के पीछे) जाकर एक पौधा लगाकर आयें तथा समय-समय पर उसकी देखरेख करें | पोलिटेक्निक महाविद्यालय के प्राचार्य व पर्यावरण के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्रीArun Singh Bhadoriya जी पिछले डेढ़ दशक से उस क्षेत्र को हरा-भरा करने में लगे हैं | हम सब उनके सहयोगी बनें तथा अपने बैतूल का मौसम फिर पच्चीस साल पूर्व जैसा बनाएँ जिसमें अप्रेल-मई में भी पंखो की जरुरत नहीं पड़ती थी |
#सोनाघाटी की पहाडियाँ पर्यावरण संतुलन के लिए #बैतूल नगर के लिए वरदान है | कभी इन्हीं पहाडियों पर आच्छादित घने वन के कारण अंग्रेजों ने यहाँ अपनी बस्ती बसाई थी | इन्हीं पहाडियों पर बैठकर महाकवि दादा #भवानीप्रसाद_मिश्र ने १९३९ में अपनी कालजयी रचना "#सतपुड़ा_के_घने_जंगल-ऊँघते अनमने जंगल" लिखी थी | बैतूल के पूर्व से पश्चिम की तरफ घेरे रखने वाली ये पहाडियाँ अब लगभग वृक्षविहीन है | लेंटाना सहित कुछ अन्य काँटेदार जंगली झाडियाँ भर बची है | हर साल पुराने वृक्षों के ठूँठों से सिसकती बड़ी होती डालियों को लोग नोच ले जाते हैं | पहाडियों के कई हिस्से अवैध उत्खनन के कारण क्षत-विक्षत है | लगातार खुदाई तथा बचे हुए छोटे-बड़े पेड़ों की अवैध कटाई देखकर ऐसा लगता है मानो पूरा बैतूल इन पहाडियों को जितनी जल्दी हो खा जाना चाहता है |
वर्ष २०१६ बैतूल इतना गरम कभी नहीं हुआ | मैं भारत भारती में पिछले बीस साल से रह रहा हूँ | हर मौसम में #भारत_भारती में बैतूल से दो-तीन डिग्री तापमान कम रहता है | लैकिन पिछले दो वर्ष से भारत भारती क्षेत्र का पर्यावरण भी खराब हो गया | इसका सबसे बड़ा कारण फोरलेन के लिए खोदी गई सोनाघाटी की पहाड़ी है | जो पूर्व , उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम की ओर घने जंगलों से से आने वाली ठंडी हवाओं को वर्ष भर रोकती थी | इसे के कारण यहाँ गर्मी कम पड़ती थी तथा वर्षा भी सम होती थी | विशालकाय पहाड़ी खुद जाने से वह एक चिमनी या एक्जास पंखे का काम करने लग गई है |
भारत भारती के क्षेत्र में पिछले दो वर्षों से हो रही भयंकर ओलावृष्टि का मुख्य कारण भी मुझे यह पहाड़ी में बन गया विशालकाय बोगदा ही लगता है | खैर विकास का क्रम भी आवश्यक है किन्तु अब क्या किया जाए ?
बैतूल जिला शासन-प्रशासन ने इस वर्ष एक बड़ी पहल की है #ताप्ती_वन_महोत्सव के नाम से सोनाघाटी की एक पहाड़ी को नगर भर के लोगों ने हरी-भरी करने का संकल्प लिया है | कल बड़ी संख्या में यहाँ नीम के पौधे रोपे गए हैं | जल संवर्धन की दृष्टि से खन्तियाँ भी खोदी है |Collector Betul मा. पाटिल जी व्यक्तिगत रूचि लेकर यह कार्य कर रहे हैं |
बैतूल के सभी पर्यावरण प्रेमियों से आग्रह है कि इस वर्षा ऋतु में एक बार सोनाघाटी (पोलिटेक्निक कालेज के पीछे) जाकर एक पौधा लगाकर आयें तथा समय-समय पर उसकी देखरेख करें | पोलिटेक्निक महाविद्यालय के प्राचार्य व पर्यावरण के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्रीArun Singh Bhadoriya जी पिछले डेढ़ दशक से उस क्षेत्र को हरा-भरा करने में लगे हैं | हम सब उनके सहयोगी बनें तथा अपने बैतूल का मौसम फिर पच्चीस साल पूर्व जैसा बनाएँ जिसमें अप्रेल-मई में भी पंखो की जरुरत नहीं पड़ती थी |
No comments:
Post a Comment