Tuesday, 6 September 2016

कृषि नीति

#कृषि_नीति 
अंग्रेजों के आने के पूर्व भूमि का बंदोबस्त गाँव के लोग ही करते थे | भूमि किसी की नहीं अपितु गाँव की होती थी | एक से दूसरे गाँव के बीच काकड़ अथवा मेढा हुआ करता था | गाँव के लोग मिल बैठकर कृषि, चरागाह तथा वन क्षेत्र की भूमि का स्थान तय करते थे | प्रति दस वर्ष में चरागाह और कृषि भूमि की अदला-बदली होती थी | पड़त भूमि पर गोबर और गोमूत्र गिरने से वह फिर से उपजाऊ जाती थी | अंग्रेज लोग चाहे भूमि का बँटवारा कर गए किन्तु पड़त और कृषि भूमि का यह परिवर्तन आजादी के बाद भी होता रहा |
लैकिन पिछले तीस-चालीस वर्षों में यह बदलाव न के बराबर हुआ है | चरागाह लगभग समाप्त हो गए और कृषि योग्य भूमि पर लगातार खेती वो भी एक ही प्रकार की हो रही है | ऊपर से रसायन और कीटनाशकों ने भूमि का जो सत्यानाश किया है वो अलग ..| 
अगर हमें अपनी धरती पुनः सुजलाम् सुफलाम् बनाना है तो किसी भी रूप में उसमे गोबर और गोमूत्र का प्रयोग करना ही होगा |

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