Tuesday, 6 September 2016

#गावो_रक्षति_रक्षितः 
बरसात का पानी धरती के अंदर जाता कैसे है ?
बाँध, तालाब आदि मानवनिर्मित तंत्र के अलावा एक तो ग्रीष्म काल में सूर्यताप से धरती के अंदर मिट्टी में नमी कम हो जाने से दरारें पड़ जाती है, जिससे वर्षा जल गिरते ही इन दरारों से धरती के अंदर समाने लगता है | तथा दूसरा महत्वपूर्ण कारण है धरती के अंदर पग-पग पर छोटे-बड़े छिद्र होते हैं जिन्हें पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीव-जन्तु बनाते हैं | ये जीव अपना घर बनाने के लिए धरती के अंदर हजारों छेद करते हैं तथा वर्षाऋतु आने पर अपने घरों से अपने अंडे-बच्चे लेकर पेड़ों पर या ऊँचे स्थान पर चले जाते हैं |
इन अरबों-खरबों जीव-जन्तुओं को प्रतिदिन भोजन के लिए धरती के ऊपर ही आना पड़ता है , तथा हरबार नया छिद्र बनाकर निकलना पड़ता है | जिससे जमीन पोली हो जाती है तथा वर्षा जल वहीं से धरती के अंदर जाकर जमा हो जाता है, जिसको हम विभिन्न माध्यमों से खींचकर सालभर उपयोग करते हैं |
पिछले बीस वर्ष में मैंने अपने अनुभव से जाना है कि जमीन के अंदर रहने वाले इन छोटे-छोटे असंख्य जीवों के लिए गाय का गोबर सबसे सबसे अच्छा खाद्य है | गाय का गोबर जहाँ गिरता है, वहाँ जमीन से अनेक प्रकार के जीव निकलकर उसे एक-दो दिन में ही चट कर जाते हैं | गाय के गोबर में केंचुओं की संख्या बढ़ाने की अद्भुत क्षमता है और केंचुआ धरती को उपजाऊ बनाने सबसे बड़ा माध्यम है | केंचुआ मिट्टी के अंदर पड़े अपशिष्ट खाता है तथा मलत्याग धरती के ऊपर आकर करता है | जिससे धरती पोली और भुरभुरी बनती है, ऐसी मिट्टी में फसलों की जड़ें गहरी जाती है | तथा धरती में जलधारण करने की क्षमता भी बढ़ती है |
इसलिए कहा गया है जहाँ गाय कम हो जायेगी वहाँ जमीन की उर्वरकता कम होती जायेगी तथा धरती के अंदर का भी जल सूखता जायेगा | जैवविविधता की रक्षा करने में गाय सक्षम हैं , हमें केवल गाय की रक्षा करनी है |

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