#माँ
- माँ सुबह चार बजे से उठकर घट्टी (चक्की) में ज्वार पीसते हुए गीत गाती थी, वो आवाज सौ लता मंगेशकर से भी मीठी होती थी |
- माँ सुबह साढ़े चार बजे राई घुमाकर दहीं से मक्खन अलग कर जो छाछ बनाती थी, दुनियाँ का कोई पेय आज भी उसके मुकाबले का नहीं है |
- माँ सुबह पाँच बजे गाँव की कुण्डी (छोटा कुआ) से रस्सी से खींचकर मटके में पानी भरकर लाती थी, वो स्वाद दुनियाँ का कोई आरो वाटर नहीं दे सकता |
- मेरी बिना पढ़ी-लिखी माँ रोज सुबह खटिया के पास चिमनी जलाकर तथा स्कूल का झोला सिरहाने रखकर कहती "उठ , भण बेटा" | दुनियाँ का कोई शिक्षक यह नहीं कर सका |
- स्कूल का समय होते ही माँ काला टीका लगाकर झोला कंधे में टांगकर भेज देती, हम हमेशा मास्टर जी से पहले स्कूल पहुँच जाते | तब कोई घड़ी नाम की चीज घर पर नहीं थी |
- संवेदना की पराकाष्ठा तो तब हो जाती, जब भूख लगने को होती ही थी कि माँ आवाज लगा देती "जीम ले बेटा", |
- जब भी आइसक्रीम वाला गाँव में आता था , मैं दुनियाँ के सबसे अमीर घर का बच्चा होता था, क्योंकि माँ के पल्लू में पंजी-दस्सी रहती ही थी |
- मैं जब खेत पर जाता तो माँ खेत पर मिलती, जब घर पर आता था तो माँ घर पर मिलती | मैं खेलते हुए गाँव की किसी भी गली में गिर जाता, माँ तुरन्त आकर उठा लेती थी, ब्रहमाण्ड के किसी धर्म का भगवान इतना अंतरयामी नहीं हो सकता |
- अभी भी जब कभी घर पर माँ से मिलकर जिस स्थान के लिए निकलता हूँ, पहुँचने के दस-पाँच मिनिट आगे पीछे छोटे का फोन आ जाता है कि माँ पूछ रही "पहुँच गए क्या" ...|
- माँ सुबह चार बजे से उठकर घट्टी (चक्की) में ज्वार पीसते हुए गीत गाती थी, वो आवाज सौ लता मंगेशकर से भी मीठी होती थी |
- माँ सुबह साढ़े चार बजे राई घुमाकर दहीं से मक्खन अलग कर जो छाछ बनाती थी, दुनियाँ का कोई पेय आज भी उसके मुकाबले का नहीं है |
- माँ सुबह पाँच बजे गाँव की कुण्डी (छोटा कुआ) से रस्सी से खींचकर मटके में पानी भरकर लाती थी, वो स्वाद दुनियाँ का कोई आरो वाटर नहीं दे सकता |
- मेरी बिना पढ़ी-लिखी माँ रोज सुबह खटिया के पास चिमनी जलाकर तथा स्कूल का झोला सिरहाने रखकर कहती "उठ , भण बेटा" | दुनियाँ का कोई शिक्षक यह नहीं कर सका |
- स्कूल का समय होते ही माँ काला टीका लगाकर झोला कंधे में टांगकर भेज देती, हम हमेशा मास्टर जी से पहले स्कूल पहुँच जाते | तब कोई घड़ी नाम की चीज घर पर नहीं थी |
- संवेदना की पराकाष्ठा तो तब हो जाती, जब भूख लगने को होती ही थी कि माँ आवाज लगा देती "जीम ले बेटा", |
- जब भी आइसक्रीम वाला गाँव में आता था , मैं दुनियाँ के सबसे अमीर घर का बच्चा होता था, क्योंकि माँ के पल्लू में पंजी-दस्सी रहती ही थी |
- मैं जब खेत पर जाता तो माँ खेत पर मिलती, जब घर पर आता था तो माँ घर पर मिलती | मैं खेलते हुए गाँव की किसी भी गली में गिर जाता, माँ तुरन्त आकर उठा लेती थी, ब्रहमाण्ड के किसी धर्म का भगवान इतना अंतरयामी नहीं हो सकता |
- अभी भी जब कभी घर पर माँ से मिलकर जिस स्थान के लिए निकलता हूँ, पहुँचने के दस-पाँच मिनिट आगे पीछे छोटे का फोन आ जाता है कि माँ पूछ रही "पहुँच गए क्या" ...|
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