Saturday, 6 July 2013

!! विडम्बनाएँ !!

!! विडम्बनाएँ !!

किसमे ढालें पीढ़ीयों को, संच भी नहीं,
जगह किसी के दिल में, दो इंच भी नहीं !

मचान सजा लिए, सबने अपने-अपने,
मिल बैठ बतियाने को, मंच भी नहीं !

परमेश्वर बने कैसे, अब पंचायतों में, 
सच्चे मन का कोई, पंच भी नहीं !

मुठ्ठी-मुठ्ठी लूटकर, भर ली कोठियाँ,
गम फिर भी उनको, है रंच भी नहीं !

दर छोड़ दामिनी को, भेजूँ किसके संग,
खरा खट्ट आदमी, एक टंच भी नहीं !
..........................(मोहन नागर)

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर भाई साहब

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