!! सूखी नदी-भूखा आदमी !!
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बरसात में अथाह
जलराशि लेकर
चलने वाली सरिताएँ
शीत जाते-जाते ही
थक जाती है
गर्मी में तो
रुक ही जाती है वहाँ
जहाँ मनुष्य की निगाह से
बचे हुए किसी पेड़ के नीचे
गहरे डोबने में
तडफती मछलियों के बीच
अंतिम सांसें गिनती हुई
मिल जायेगी नदियाँ !
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लेकिन
देर-सबेर
मछलियाँ लेने/पेड़ काटने
वहाँ भी पहुँच जाता है
लालची आदमी
किसी कपूत की तरह
जीवन भर अलग रहकर
जैसे आ जाता है
माँ के अंतिम संस्कार में
मर चुकी माँ के गहनों में
हिस्सेदारी मांगने
(मोहन नागर
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